हिमाचल पर कर्ज का पहाड़ फिर भी फ्रीबीज पर जोर… आर्थिक संकट का ट्रेलर तो नहीं मंत्रियों का सैलरी छोड़ने का ऐलान? – Himachal pradesh Sukhvinder Singh Sukhu faces financial crisis cm ministers not to draw salaries for 2 months ntc – MASHAHER

ISLAM GAMAL29 August 2024Last Update :
हिमाचल पर कर्ज का पहाड़ फिर भी फ्रीबीज पर जोर… आर्थिक संकट का ट्रेलर तो नहीं मंत्रियों का सैलरी छोड़ने का ऐलान? – Himachal pradesh Sukhvinder Singh Sukhu faces financial crisis cm ministers not to draw salaries for 2 months ntc – MASHAHER


दुष्यंत कुमार का शेर है… 
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए

ये शेर हकीकत में बदलता दिख रहा है. हिमाचल प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने गुरुवार को एलान किया कि मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, बोर्ड निगमों के चेयरमैन दो महीने तक वेतन-भत्ता नहीं लेंगे. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सभी विधायकों से भी वेतन-भत्ता दो महीने के लिए छोड़ने की मांग रखी है. सीएम सुक्खू का कहना है कि चूंकि प्रदेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए वो दो महीने के लिए अपना और अपने मंत्रियों का वेतन-भत्ता छोड़ रहे हैं. विधायकों से मुख्यमंत्री सुक्खू ने कहा कि हो सके तो दो महीना एडजस्ट कर लीजिए. अभी वेतन-भत्ता मत लीजिए. आगे देख लीजिएगा.

तो क्या जैसे प्राकृतिक आपदा में शिमला से लेकर मनाली तक ऐसे पहाड़ टूटता देखा गया है. क्योंकि विकास अनियंत्रित तरीके से किया जाता रहा. ठीक उसी तरह अब आर्थिक संकट का पहाड़ भी हिमाचल प्रदेश में टूट रहा है. क्योंकि अनियंत्रित तरीके से वादे सत्ता पाने के लिए किए जाते रहे, ना कि हालात संभालने का काम हुआ. तभी तो हिमाचल प्रदेश पर अभी 87 हजार करोड़ रुपए के करीब कर्ज है. ये देश में 9 पहाड़ी राज्यों में किसी एक राज्य में सबसे ज्यादा है. 31 मार्च 2025 तक हिमाचल प्रदेश पर 94,992 करोड़ रुपए के लोन का भार हो जाएगा. 

क्या है कर्ज बढ़ने की बड़ी वजह?
हिमाचल प्रदेश में ऐसा क्या हो गया है कि आखिर मुख्यमंत्री और मंत्री को अपना ही वेतन-भत्ता छोड़ना पड़ रहा है. सालभर का बजट हिमाचल प्रदेश का 58,444 करोड़ रुपए है. जिसमें से केवल वेतन, पेंशन और पुराना कर्जा चुकाने में 42,079 करोड़ रुपए चला जा रहा है. क्योंकि 20,000 हजार करोड़ रुपए सालाना तो सिर्फ ओल्ड पेंशन स्कीम का खर्च माना जा रहा है. नौबत ये है कि 28 हजार कर्मचारियों को पेंशन, ग्रेच्युटी और दूसरी मद का 1000 करोड़ रुपए तो सरकार दे ही नहीं पाई है.

ऐसा नहीं है कि वेतन-भत्ता पूरा छोड़ दिया है. बल्कि मुख्यमंत्री ने कहा है कि अभी नहीं लेंगे, हालात सही हो जाएंगे तो आगे ले लेंगे. सवाल है कि क्या ये गंभीर होते आर्थिक संकट का ट्रेलर है. जहां फिलहाल हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मंत्री अपना वेतन भत्ता दो महीना छोड़कर ये दिखा रहे हैं कि वो तो कुर्बानी दे ही रहे हैं. 

सुक्खू सरकार के बजट को और भी बांटकर आप देखें तो 100 रुपए का अगर बजट है तो 25 रुपए वेतन देने में, 17 रुपए पेंशन देने में, 11 रुपए ब्याज चुकाने में, 9 रुपए कर्ज चुकाने में, 10 रुपए अनुदान देने में खर्च हो जाता है. 28 रुपए बचता है, जिसमें विकास का काम भी करना है और मुफ्त के वादों को भी पूरा करना है. कहते हैं बजट यहीं गड़बड़ा जाता है. 

किस स्कीम पर सरकार के कितने रुपए हो रहे खर्च?
हिमाचल प्रदेश पर कर्ज इतना है कि प्रति व्यक्ति कर्ज 1 लाख 17 हजार रुपए पहुंच गया है. जो देश में अरुणाचल प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा है. यानी कर्ज का पहाड़ बड़ा है फिर भी फ्री के जो वादे हैं उनका खर्च अगर देखें तो 1500 रुपए महीना महिलाओं को देने में सालाना खर्च 800 करोड़ रुपए का है. ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने से 1000 करोड़ रुपए सालाना का अतिरिक्त खर्च है. 18 हजार करोड़ रुपया तो फ्री बिजली की सब्सिडी में सरकार खर्च करती रही. यानी सिर्फ तीन वादों पर खर्च 19800 करोड़ रुपए सालाना का आता है. अब आप सोचिए जहां पहले से वेतन-पेंशन देने में ही जेब खाली हो रही है, वहां नया खर्चा भार ही तो बनेगा. यही वजह है कि 300 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा करके भी हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार वो वादा 18 महीने बाद भी पूरा नहीं कर पाई. बल्कि पहले से 125 यूनिट फ्री बिजली जो दी जा रही थी, उसमें भी बदलाव करना पड़ा. पिछले महीने हिमाचल प्रदेश में आयकर भरने वाले घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट फ्री बिजली जो दी जा रही थी, उस पर रोक लग गई. 

केंद्र सरकार से सुक्खू सरकार को झटका
सुक्खू सरकार को झटका देते हुए केंद्र सरकार ने पहले उधार लेने की सीमा 5500 करोड़ रुपये घटा दी थी. राज्य को जीडीपी के 5 फीसदी तक उधार लेने की अनुमति थी, लेकिन इसे घटाकर 3.5 फीसदी कर दिया गया है. राज्य सरकार पहले 14,500 करोड़ रुपये तक उधार ले सकती थी, लेकिन अब वह केवल 9,000 करोड़ रुपये ही उधार ले सकती है.

भाजपा सरकार द्वारा छोड़ा गया कर्ज विरासत में मिला है: सुखविंदर सिंह सुक्खू
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा, ‘हमें पिछली भाजपा सरकार द्वारा छोड़ा गया कर्ज विरासत में मिला है, जो राज्य को फाइनेंशियल इमरजेंसी में धकेलने के लिए जिम्मेदार है. हमने राजस्व प्राप्तियों में सुधार किया है. पिछली सरकार ने पांच साल में 665 करोड़ रुपये का आबकारी राजस्व एकत्र किया था और हमने सिर्फ एक साल में 485 करोड़ रुपये कमाए. हम इस पर काम कर रहे हैं और राज्य की वित्तीय सेहत सुधारने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’

-राज्य में 1,89,466 से अधिक पेंशनभोगी हैं, जिनके 2030-31 तक बढ़कर 2,38,827 होने की उम्मीद है.

-केंद्र सरकार ने कर्ज सीमा को 5 फीसदी से घटाकर 3.5 फीसदी कर दिया है, जिसका अर्थ है कि राज्य सरकार जीडीपी का केवल 3.5 फीसदी कर्ज के रूप में जुटा पाएगी.


Source Agencies

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