मामला दबाने, सबूत मिटाने और जांच टरकाने… वो 7 सवाल जिनके जवाब ममता से चाहते हैं लेडी डॉक्टर के पेरेंट्स – Cover up conspiracy to destroy evidence and suspense on investigation Who will answer these 7 questions on Kolkata case victim doctor family ntc – MASHAHER

ISLAM GAMAL6 September 2024Last Update :
मामला दबाने, सबूत मिटाने और जांच टरकाने… वो 7 सवाल जिनके जवाब ममता से चाहते हैं लेडी डॉक्टर के पेरेंट्स – Cover up conspiracy to destroy evidence and suspense on investigation Who will answer these 7 questions on Kolkata case victim doctor family ntc – MASHAHER


पश्चिम बंगाल में कोलकाता कांड चर्चा में है. जिस ट्रेनी लेडी डॉक्टर का ‘रेप और मर्डर हुआ, उसके पिता ने गुरुवार को सनसनीखेज आरोप लगाकर एक बार फिर पुलिस को सवालों में खड़ा कर दिया है. पिता ने आरोप लगाया है कि 9 अगस्त को जब पुलिस ने उनकी बेटी का शव उन्हें सौंपा तो एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने उन्हें पैसे लेने का ऑफर दिया. कोलकाता पुलिस ने इस पूरे मामले को दबाने की पूरी कोशिश की. हालांकि, सत्तारूढ़ TMC ने इन आरोपों को गलत बताया है. नए आरोपों के बाद अस्पताल प्रशासन से लेकर पुलिस तक पर सवाल खड़े हो रहे हैं, जिनके जवाब नहीं मिल रहे हैं?

ये पूरी घटना 9 अगस्त को सामने आई थी. 31 साल की ट्रेनी लेडी डॉक्टर का शव आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल की तीसरी मंजिल पर स्थित सेमिनार हॉल में मिला था. उसके शरीर से कपड़े गायब थे. खून बह रहा था. शरीर में चोटों के निशान थे. पुलिस ने आरोपी संजय रॉय को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने सवाल उठाए और मामले को पुलिस से सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को स्वत: संज्ञान लिया और सरकार से लेकर पुलिस-अस्पताल प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई थी.

पीड़ित परिवार का क्या कहना है?

पीड़िता के पिता का कहना है, कोलकाता पुलिस ने जल्दबाजी में शव का अंतिम संस्कार कराकर मामले को दबाने की कोशिश की. हमें बेटी का शव नहीं देखने दिया और घंटों पुलिस स्टेशन में इंतजार कराया. पोस्टमार्टम के बाद हमें शव सौंपा गया. इसी दरम्यान एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (DCP) ने हमें मुंह बंद करने के लिए पैसे ऑफर किए, लेकिन हमने इससे इनकार कर दिया. पुलिस के ऑफर से परिवार हैरान था. चूंकि उस वक्त परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा था, इसलिए जवाब नहीं दे पाए थे. अब उस अफसर का नाम सीबीआई को बता दिया है. परिजन का सवाल था कि पुलिस क्यों पैसे देना चाहती थी? वो किसे बचाना चाहती थी? इसका जवाब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को देना चाहिए. 

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परिवार कहता है कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं हुआ, 300-400 पुलिस वालों ने हमें घेर रखा था, लेकिन अंतिम संस्कार हो जाने के बाद वहां एक भी पुलिस वाला नहीं दिखा. परिवार क्या करेगा, कैसे घर जाएगा? पुलिस ने कोई जिम्मेदारी नहीं ली. जब घर में बेटी का शव माता-पिता के सामने पड़ा था और हम आंसू बहा रहे थे, तब पुलिस पैसे का ऑफर दे रही थी, क्या यही पुलिस की मानवता है?

1. बंगाल सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा क्यों?

इस मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ जो गुस्सा है, उसे कम करने के लिए उन्होंने कई प्रयास किए हैं. वो रेप के मामलों में फांसी की सजा देने वाला कानून (एंटी रेप बिल) लाईं और उन्होंने इस घटना के खिलाफ पैदल मार्च भी किया. लेकिन इस सबके बावजूद वो इस महिला डॉक्टर के परिवार की नाराजगी को कम नहीं कर पाईं. जब तक वो इस पीड़ित परिवार की नाराजगी को दूर नहीं करेंगी, तब तक उनके खिलाफ पैदा हुआ आक्रोश थमेगा नहीं. एक दिन पहले भी पश्चिम बंगाल और राजधानी कोलकाता में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें लाखों लोग सड़कों पर थे और बाकी लोग अपने घरों की लाइटें बंद करके अपना विरोध दर्ज करा रहे थे और इस विरोध प्रदर्शन के समर्थन में गर्वनर हाउस की भी लाइटें बंद की गई थीं.

2. ममता सरकार पर क्या उठ रहे हैं सवाल?

इस केस में पीड़ित परिवार द्वारा लगाए गए नए आरोपों के बाद फिर सरकार सवालों में है. ये सवाल राज्य की कानून-व्यवस्था, प्रशासनिक कार्रवाई और सरकार की जवाबदेही से जुड़े हैं. सवाल यह भी उठ रहा है कि पुलिस, पीड़ित परिवार को रिश्वत क्यों दे रही थी? अंतिम संस्कार में जल्दबाजी क्यों की गई? परिवार को नजरबंदी में क्यों रखा जा रहा था? कौन चाह रहा था कि सबूत खत्म हो जाएं और कौन इस पूरे मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है? क्या नए एंटी रेप बिल से से मसला हल हो जाएगा? 

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3. पुलिस क्यों सवालों में है?

सवाल उठ रहा है कि पुलिस क्यों पीड़ित परिवार रिश्वत दे रही थी? और क्यों जल्द अंतिम संस्कार करवाना चाहती थी? क्या रिश्वत देकर पुलिस परिवार को शांत करवाना चाहती थी? परिवार का कहना है कि पहले पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की. उसके बाद वो जल्द अंतिम संस्कार करवाना चाहती थी, ताकि मामला खत्म हो जाए. सारे सबूत दफन हो जाएं और आरजी कर मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष का बचा लिया जाए. 

पीड़ित परिवार के आरोपों पर पुलिस की तरफ से सफाई में बयान नहीं आया है. हालांकि, टीएमसी ने पीड़ित परिवार के बयान पर सवाल उठाए हैं. सत्तारूढ़ पार्टी का कहना है कि कुछ दिनों पहले पीड़ित परिवार ने ही अपने एक बयान में कहा था कि उन्होंने पुलिस से कोई पैसा नहीं लिया है. लेकिन अब वो अपनी ही बातों से मुकर रहे हैं और पुलिस पर गलत आरोप लगा रहे हैं.

ट्रेनी लेडी डॉक्टर की मां का कहना है कि शुरुआती जांच के बाद पुलिस ने बताया था कि बेटी ने उस रात 11.30 बजे सेमिनार हॉल (घटनास्थल) में 4 सहयोगी डॉक्टर्स के साथ डिनर किया था. फिर टीवी पर पैरिस ओलंपिक देखा. हालांकि, मेरी बेटी को स्पोटर्स में रुचि नहीं थी. वो रात में मुझसे फोन पर बात करती थी. उस रात उसका कॉल नहीं आया. बताते चलें कि इस मामले में सीबीआई ने भी इन साथी डॉक्टर्स से पूछताछ की है और उस रात के बारे में सवाल-जवाब किए हैं. मां का कहना था कि हम लोग बॉडी को रात में रखना चाहते थे. लेकिन पुलिस ने रात में ही अंतिम संस्कार करवा दिया. ऐसा क्यों?

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4. क्या सबूत मिटाने की साजिश थी?

सवाल उठ रहा है कि क्या अस्पताल में रेनोवेशन के बहाने सबूत मिटाने की साजिश रची गई थी? दरअसल, घटना के अगले दिन मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष ने सेमिनार हॉल से सटे कमरों के रेनोवेशन का ऑर्डर दिया था. सेमिनार हॉल से सटे कमरों और बाथरूम को तोड़ा गया. जांच एजेंसी सीबीआई ने इसे लेकर सवाल उठाए थे और ये काम तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया था. उसके बाद अस्पताल में भीड़ ने अटैक कर दिया. पूरे कैंपस में तोड़फोड़ की गई. इसे भी सबूत मिटाने की साजिश से जोड़कर देखा गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी घटना की टाइमिंग पर सवाल खड़े किए. पोस्टमार्टम 9 अगस्त की शाम 6.10 बजे किया गया. फिर भी अप्राकृतिक मौत की सूचना 9 अगस्त की रात 11.30 बजे ताला पुलिस स्टेशन को भेजी गई. पीड़िता के अंतिम संस्कार के बाद रात 11:45 बजे एफआईआर दर्ज की गई.

कोर्ट ने कोलकाता पुलिस को फटकार लगाई थी और इसे बेहद परेशान करने वाला बताया था. SC ने जांच में भी खामियों को उजागर किया था. सीबीआई का कहना था कि जब तक एजेंसी ने जांच अपने हाथ में ली, तब तक स्थानीय पुलिस द्वारा अपराध स्थल को बदल दिया गया. कॉलेज के प्रिंसिपल को सीधे कॉलेज आना चाहिए था और एफआईआर के लिए निर्देश देना चाहिए था.

5. किसके कहने पर दबाया जा रहा था मामला?

जांच में सामने आया कि पीड़िता के माता-पिता को सूचना दी गई थी कि उनकी बेटी की अस्पताल में तबीयत ठीक नहीं है. वे वहां आ जाएं. जब माता-पिता अस्पताल पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि आपकी बेटी ने सुसाइड कर लिया है. शव दिखाने के लिए कहा तो इंतजार करने के लिए बैठा दिया. यही वजह है कि परिजन ने मामले को छिपाने का संदेह जताया. इतना ही नहीं, क्राइम सीन से छेड़छाड़ की गई. सुप्रीम कोर्ट पहले ही सहायक पुलिस अधीक्षक की भूमिका पर सवाल खड़े कर चुका है. SC का कहना था कि ASP का आचरण भी बहुत संदिग्ध है. एफआईआर के पहले पुलिस डायरी में ये कब मेंशन किया कि ये अन नैचुरल डेथ है? उन्होंने ऐसा क्यों किया?

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6.  इन सवालों से भी नहीं बच सकती है सरकार?

पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की. बंगाल सरकार को जवाब देना चाहिए कि पुलिस की जांच प्रक्रिया में क्यों खामियां रहीं? परिवार ने आरोप लगाया कि उन्हें प्रलोभन दिया गया ताकि वे मामले को आगे ना बढ़ाएं. सरकार को यह बताना चाहिए कि किसने यह ऑफर दिया और अस्पताल में सुरक्षा इंतजाम कैसे कमजोर पड़ गए? पुलिस ने दोषियों को बचाने का प्रयास क्यों किया? पुलिस पर मामले को ठीक से हैंडल नहीं करने का आरोप है? सरकार को यह साफ करना चाहिए कि पुलिस की जवाबदेही क्यों तय नहीं की गई? संदीप घोष पर एक्शन लेने की बजाय उसका दो दिन बाद दूसरे अस्पताल में ट्रांसफर क्यों किया गया? क्या कारण है कि अब तक किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है? दोषी अधिकारियों को बर्खास्त करने या उन पर कार्रवाई करने में देरी क्यों हो रही है?

7. क्या एंटी रेप बिल रोक सकेगा ऐसी घटना?

सवाल उठा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार की तरफ से ऐसे क्या कदम उठाए जा रहे हैं? हाल ही में सरकार एंटी रेप बिल लेकर आई है. चर्चा के बाद यह विधानसभा से अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक पास हो गया है. अब राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. हालांकि, राजभवन की तरफ से बताया गया है कि राज्यपाल को इस विधेयक की टेक्निकल रिपोर्ट नहीं भेजी गई है, जो मंजूरी देने के लिए जरूरी है. नए कानून में 21 दिन में जांच पूरी करने और दोष साबित होने पर 10 दिन में फांसी दिए जाने का प्रावधान है. इसका उद्देश्य अपराधियों में डर पैदा करना और न्यायिक प्रक्रिया को तेजी लाना और प्रभावी बनाना है. 

दूसरा पहलू यह है कि कानून का असर तभी होगा जब इसके साथ-साथ जागरूकता अभियानों के जरिए लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जाए. शिक्षा और जागरूकता से यौन हिंसा के खिलाफ समाज में एक मजबूत नैतिक मानदंड विकसित किया जा सकता है. सिर्फ विधायी सुधारों से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है. चूंकि समाज में व्यापक सामाजिक सुधार की जरूरत है ताकि महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी और अवांछनीय दृष्टिकोण बदले जा सके. पुलिस और न्यायिक प्रणाली में भी समग्र सुधार की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है ताकि वे ऐसी घटनाओं को संभालने में अधिक सक्षम हो सकें. शिक्षा और जागरूकता अभियान, महिलाओं की सुरक्षा में सुधार और समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.

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पीड़ित परिवार बोला- संदीप घोष को बचाना चाहती थी पुलिस

टीएमसी नेता और मंत्री शशि पांजा ने कहा, कल एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दावा किया गया कि एक पुलिस अधिकारी ने घटना के बाद माता-पिता को पैसे की पेशकश की. एक और वीडियो सामने आया है, जिसमें माता-पिता ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे दावे झूठ हैं और वे सिर्फ अपनी बेटी के लिए न्याय चाहते हैं. टीएमसी के आरोप पर पीड़ित परिवार ने प्रतिक्रिया दी है. परिवार ने दावा किया कि घटना के कुछ दिन बाद पुलिस ने वीडियो शूट किया और हमें इसमें हिस्सा लेने के लिए मजबूर किया. सच्चाई यह है कि पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की और आरजी कर के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष को बचाने का प्रयास किया.


Source Agencies

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