अवैध अतिक्रमण, तोड़फोड़ और मुआवजा, सार्वजनिक संपत्ति और पर्सनल मकान का अंतर… SC ने बुलडोजर एक्शन की खींच दी लकीर – Illegal encroachment demolition and compensation difference between public property and personal house SC draws line on bulldozer action ntc – MASHAHER

ISLAM GAMAL2 October 2024Last Update :
अवैध अतिक्रमण, तोड़फोड़ और मुआवजा, सार्वजनिक संपत्ति और पर्सनल मकान का अंतर… SC ने बुलडोजर एक्शन की खींच दी लकीर – Illegal encroachment demolition and compensation difference between public property and personal house SC draws line on bulldozer action ntc – MASHAHER


देश में बुलडोजर एक्शन चर्चा में है. सुप्रीम कोर्ट में इस केस की चार बार सुनवाई हो चुकी है. अब फैसला आने की बारी है. इन चार सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने काफी कुछ साफ कर दिया है और बुलडोजर एक्शन को लेकर टिप्पणियों के जरिए लकीर खींच दी है. कोर्ट ने अवैध अतिक्रमण का परिभाषा बता दी है. तोड़फोड़ की कार्रवाई कब की जा सकती है? मुआवजा किसे देना होगा? और सार्वजनिक संपत्ति और निजी संपत्ति में अंतर क्या है? यह सब कुछ जाहिर कर दिया है. हालांकि, बुलडोजर एक्शन को लेकर गाइडलाइन बनाई जाएगी, उसके बाद ही यह साफ होगा कि अगर बुलडोजर चलेगा तो उसका आधार क्या होगा?

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा, फैसला आने तक किसी दोषी या आरोपी की संपत्तियां गिराने पर रोक जारी रहेगी. यह आदेश उन मामलों में लागू नहीं होगा, जहां अनधिकृत निर्माण हटाने के लिए ऐसी ध्वस्तीकरण कार्रवाई की जरूरत है. यानी सार्वजनिक संपत्तियों पर कब्जे मामलों में बुलडोजर एक्शन जारी रहेगा. इस तरह की कार्रवाई प्रभावित नहीं होगी.

वैकल्पिक व्यवस्था के लिए समय दिया जाना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की सूचना के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल होना चाहिए. साथ ही उस कार्रवाई की वीडियोग्राफी करानी चाहिए. SC ने बुलडोजर एक्शन को लेकर गाइडलाइन बनाने के भी निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट का साफ कहना था कि किसी केस में कोई आरोपी हो या दोषी… उसके घर या संपत्ति में तोड़फोड़ नहीं की जा सकती है. यानी आरोपी या दोषी होना बुलडोजर चलाने का आधार नहीं हो सकता है. इतना ही नहीं, अवैध निर्माण साबित होने पर भी वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए. यानी तुरंत बुलडोजर लेकर पहुंचना और तोड़फोड़ करना संवैधानिक नहीं है.

कार्रवाई से पहले डाक से भेजा जाए नोटिस

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुझाव दिया कि तोड़फोड़ का आदेश और कार्रवाई के बीच 10 या 15 दिनों का समय होना चाहिए ताकि लोग वैकल्पिक व्यवस्था कर सकें. अगर 15 दिनों के बाद तोड़फोड़ की जाती है तो वो कुछ भी नहीं खोएगा. महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं लगता है. अगर किसी के अवैध निर्माण को गिराने से पहले नोटिस देना है तो वो नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाए. सिर्फ प्रॉपर्टी पर जाकर नोटिस चिपकाना ही पर्याप्त नहीं है. नोटिस भी सिर्फ उस प्रॉपर्टी के मालिक को दिया जाना चाहिए.

यह भी पढ़ें: महिलाओं, “महिलाओं, बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं, अवैध निर्माण तोड़ने से पहले मिले पर्याप्त समय, बुलडोजर केस में SC की टिप्पणी

अवैध कब्जे वालों को नहीं मिलेगी राहत

दरअसल, ऐसा कई बुलडोजर एक्शन में देखा गया कि प्रशासन कहता है कि नोटिस दे दिया था. जबकि संपत्ति मालिक दावा करते हैं कि उन्हें नोटिस ही नहीं मिला. हालांकि अदालत ने ये भी साफ कहा है कि हमारा आदेश किसी भी तरह से अवैध निर्माण करने वालों को सहूलियत नहीं देगा.  यानी अवैध कब्जा करने वालों को किसी तरह की राहत नहीं दी जाएगी.

दोषी या आरोपी का घर गिराया तो देना होगा मुआवजा

एक याचिकाकर्ता की ओर से सवाल किया गया कि अगर किसी (दोषी या आरोपी) का घर गिराया तो वो क्या करेगा? क्या बुलडोजर चलाने वाले के पीछे भागेगा? इस पर जस्टिस गवई ने कहा, अगर आदेश नहीं माना गया तो प्रॉपर्टी का नवीनीकरण होगा और पीड़ित को मुआवजा दिया जाएगा. कोर्ट ने कहा- अगर एफआईआर भी दर्ज हो जाए तो कोई भी व्यक्ति आरोपी है या दोषी… सिर्फ यही बुलडोजर चलाने का आधार नहीं हो सकता है. दोषी या आरोपी का घर ढहाया तो मुआवजा देना पड़ेगा. इस दौरान कोर्ट को सुझाव दिया गया कि नवीनीकरण और मुआवजे की रकम तोड़फोड़ करने वालों से वसूली जाए.

मंदिर हो या दरगाह… बीच सड़क से हटाना ही होगा

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है. हम जो भी गाइडलाइन बनाएंगे, वो सभी के लिए होगी. चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों. अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है, फिर वह गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर… उसे हटाना ही होगा. यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकते हैं. अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए. महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छी बात नहीं है. 

अवैध निर्माण तोड़ने की क्या प्रोसेस होना चाहिए?

कोर्ट ने कहा, एक ऑनलाइन पोर्टल होना चाहिए. इसे डिजिटलाइज करना चाहिए. अफसर भी सेफ रहेंगे. नोटिस सिर्फ रजिस्टर्ड डाक से भेजना चाहिए. अतिक्रमण करने वालों को हफ्तेभर का समय मिल जाएगा. नोटिस भेजने से लेकर अन्य अपडेट पोर्टल पर दर्ज किए जाने चाहिए. कोर्ट का कहना था कि सुझाव यह है कि एक बार ध्वस्तीकरण का आदेश पारित होने के बाद इसे तुरंत लागू नहीं किया जा सकता है. कुछ समय दे सकते हैं.

यह भी पढ़ें: बुलडोजर पर नहीं लगा है फुल स्टॉप… सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर को समझिए कि कहां रोक है, कहां चल सकता है अब भी?

पिछले ही महीने सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी का बेटा आरोपी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर पिता का घर गिरा देना, ये कार्रवाई का सही तरीका नहीं है. याचिका में शिकायत की गई थी कि बीजेपी शासित राज्यों में मुस्लिमों को निशाना बनाकर बुलडोजर कार्रवाई की जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नियम के मुताबिक पहले नोटिस भेजा जाए. वैकल्पिक जगह खोजने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए. फिर अवैध निर्माण हटे, ताकि किसी महिला या बच्चे को सड़क पर ना आना पड़े. यह अच्छी बात नहीं है. बूढ़े सड़क पर आ गए हैं. हो सकता है कि वे वैकल्पिक व्यवस्था कर रहे हों.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि किसी भी संपत्ति पर कार्रवाई से पहले 10 दिन का नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाना चाहिए. इससे यह विवाद समाप्त हो जाएगा कि नोटिस मिला नहीं या भेजा नहीं गया. अगर कोई नोटिस रिसीव नहीं करता है तो उसका प्रमाण भी रहेगा. बेंच ने कहा, अवैध अतिक्रमण को लेकर अधिकारियों की ओर से जो आदेश जारी किया जाएगा, वो सही या नहीं? इसे जांचने के लिए न्यायिक निगरानी की जरूरत हो सकती है.

कहां कार्रवाई पर रोक नहीं?

सार्वजनिक स्थल, सड़क, सरकारी जमीन, रेल लाइन, जलाशयों पर अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई पर रोक नहीं है. सड़क के बीच में कोई भी धार्मिक स्थल हो, चाहे वो गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर… हटने चाहिए. वे अवरोध नहीं बन सकते हैं. लोगों की सुरक्षा और उनका हित प्राथमिकता है.

अवैध निर्माण केस का महीनेभर के भीतर निपटारा हो

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि अवैध निर्माण के मामलों में अगर स्टे लगाया गया है तो एक महीने के भीतर उसका निपटारा हो जाना चाहिए. कोर्ट का कहना था कि बुलडोजर कार्रवाई से पहले समय दिया जाना चाहिए ताकि वो परिवार अपनी वैकल्पिक व्यवस्था कर ले. उन मामलों में भी जिनमें नोटिस को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती. इस पर SG मेहता ने कहा, यह केस टू केस तय होना चाहिए. यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि अवैध निर्माण को संरक्षण ना मिले. जस्टिस गर्व ने कहा, हम अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देंगे.

यह भी पढ़ें: ‘मंदिर हो या दरगाह… सड़क के बीच धार्मिक संरचना बाधा नहीं बन सकती’, बुलडोजर केस में SC की सख्त टिप्पणी

अपराधियों के खिलाफ हिट फॉर्मूला बन गया बुलडोजर एक्शन

बुलडोजर कल्चर की शुरुआत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की और यह धीरे-धीरे कई प्रदेशों में अपराध और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई का हिट फॉर्मूला बन गया. देशभर में चल रहे बुलडोजर एक्शन के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और याचिका दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. इससे पहले उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की ओर पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, याचिका दाखिल करने वाले ऐसी धारणा बना रहे हैं कि एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर बुलडोलर कार्रवाई की जा रही है. यह ठीक नहीं है. मध्य प्रदेश में बहुत से हिंदुओं के घर गिराए गए हैं. ध्वस्तीकरण की कार्रवाई किसी व्यक्ति के किसी अपराध में आरोपित या दोषी होने के आधार पर कभी नहीं की जाती है. ये कार्रवाई स्थानीय कानूनों, टाउन प्लानिंग, म्युनिसिपल कानून और ग्राम पंचायत आदि कानून के उल्लंघन पर प्रक्रिया के अनुसार की जाती है. 

मेहता का कहना था कि अवैध निर्माण के 70 प्रतिशत केस वास्तविक होते हैं. सिर्फ 2 प्रतिशत मामले ही ऐसे होते हैं, जैसे कि याचिकाओं में आरोप लगाए गए हैं. जस्टिस विश्वनाथन का कहना था कि आंकड़े के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में 4.45 लाख ध्वस्तीकरण हुए हैं. इसे थोड़ा नहीं कह सकते हैं. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अवैध ध्वस्तीकरण की एक भी घटना होती है तो वह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. 


Source Agencies

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Comments Rules :

Breaking News